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“डिग्री आयुर्वेद की, इलाज एलोपैथ का — समस्तीपुर में सेहत के साथ खुला खिलवाड़!”

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मोहम्मद आलम

समस्तीपुर जिले में स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल किसी से छुपा नहीं है, लेकिन अब हालात खतरनाक मोड़ पर हैं। जिले के लगभग हर प्रखंड में बड़ी संख्या में बीएएमएस आयुर्वेदिक) डॉक्टर खुलकर एलोपैथिक दवाओं का प्रिस्क्रिप्शन लिख रहे हैं, यहां तक कि कई जगहों पर सर्जरी जैसी प्रक्रिया भी बिना अनुमति के की जा रही है। यह सब उस विभाग की नाक के नीचे हो रहा है, जिसे जनता की सेहत की रखवाली करनी चाहिए थी — यानी स्वास्थ्य विभाग!

जहां नियम, वहां उल्लंघन

क़ानून साफ़ है, आयुर्वेदिक डिग्री धारक डॉक्टर केवल आयुर्वेदिक औषधियां ही लिख सकते हैं। लेकिन समस्तीपुर के क्लिनिकों में एंटीबायोटिक, स्टेरॉयड, इंजेक्शन और दर्द की एलोपैथिक गोलियां धड़ल्ले से दी जा रही हैं। न तो मरीजों को सही जानकारी दी जाती है, न ही इन “कथित डॉक्टरों” के क्लिनिक पर कोई योग्य एलोपैथिक चिकित्सक तैनात होता है।

स्वास्थ्य विभाग की चुप्पी — मिलीभगत या लापरवाही?

सबसे बड़ा सवाल यही है — स्वास्थ्य विभाग आखिर सो क्यों रहा है? क्या उन्हें नहीं पता कि बिना एमबीबीएस योग्यता के एलोपैथिक दवाओं का इस्तेमाल गैरकानूनी है?या फिर ये “चुप्पी” किसी मिलीभगत का हिस्सा है?जिले में मेडिकल टीमों की औचक जांच तो होती नहीं, और जिनके पास शिकायतें जाती हैं, वे फाइलें कूड़ेदान में डाल दी जाती हैं।

गांव-गांव फैला है नेटवर्क

गांवों में गरीब और अशिक्षित जनता के बीच ये बीएएमएस डॉक्टर खुद को “स्पेशलिस्ट” बताकर भरोसा जीत लेते हैं।नतीजा  गलत दवा, गलत इंजेक्शन, और कई बार जानलेवा प्रतिक्रियाएं। कई मामलों में मरीजों को बड़े अस्पतालों में भर्ती तक कराना पड़ा, लेकिन किसी डॉक्टर पर कोई कार्रवाई नहीं हुई।

अब जवाब दे विभाग

समस्तीपुर के सिविल सर्जन और जिला स्वास्थ्य समिति को यह स्पष्ट करना चाहिए कि, जिले में कितने बीएएमएस डॉक्टर पंजीकृत हैं,
 कितनों के खिलाफ जांच हुई,
 और आखिर क्यों ये गैरकानूनी प्रैक्टिस अब भी बेरोक जारी है?

आखिरी सवाल जनता का

क्या अब लोगों की ज़िंदगी की कीमत “लाइसेंस के नाम पर लापरवाही” बन गई है?
क्या स्वास्थ्य विभाग का मौन समर्थन ही इन डॉक्टरों के हौसले को बढ़ा रहा है?अगर जवाब नहीं मिला, तो जनता पूछेगी डिग्री की आड़ में मौत क्यों बांट रहे हैं, डॉक्टर साहब?”

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